भोपाल । प्रदेश में सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों को पिछले 8 साल से प्रमोशन नहीं मिला है। राज्य सरकार मामला न्यायालय में लंबित होने से पदोन्नति की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से फिलहाल बच रही है। इस बीच मप्र हाईकोर्ट ने मंत्रालय की एक कर्मचारी की याचिका पर निर्णय दिया है कि पदोन्नति को लेकर न्यायालय की ओर से कोई रोक नहीं है। न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि याचिकाकर्ता यदि पदोन्नति की सभी पात्रता पूरी करता है तो उसे 2 महीने के भीतर प्रमोट किया जाए।


मप्र हाईकोर्ट ने कहा पदोन्नति पर रोक नहीं
मंत्रालय के कर्मचारी धर्मेन्द्र सिंह कुशवाहा ने पदोन्नति नहीं मिलने पर मप्र उच्च न्यायालय में याचिका क्रमांक 35464/2024 दायर की थी। जिसमें उसने बताया कि उसे स्टेनो टायपिस्ट से स्टेनाग्राफर के लिए प्रमोशन नहीं दिया है। संबंधित विभाग ने उसके पदोन्नति के दावे को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति मामला लंबित होने का हवाला देकर मनमाने ढंग से खारिज दिया। जबकि पदोन्नति के संबंध में पिछले साल ही ओदश हो चुके हैं कि पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है। सरकार चाहे तो पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू कर सकती है। मप्र उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारिकाधीश बंसल ने अपने आदेश में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के आदेश का हवाला देकर आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता को पदोन्नति दी जानी चाहिए। याचिकाकर्ता को बिना देरी किए 60 दिनों के भीतर पूरी प्रक्रिया करने के बाद पदोन्नति दी जाए।


इस वजह से नहीं मिल रही पदोन्नति
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के आदेशानुसार पदोन्नति पर किसी प्रकार की रोक है। पूरा मामला पदोन्नति में आरक्षण को लेकर विवादित है। जून 2016 में मप्र उच्च न्यायायल ने पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 को निरस्त कर दिया था। इसके बाद से प्रदेश में पदोन्नतियां बंद हैं। 8 साल की अवधि में हजारों कर्मचारी बिना प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो गए हैं। 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को अपने स्तर पर पदोन्नति का रास्ता निकालने के निर्देश दिए थे। इसके बाद सरकार ने मंत्रियों की कमेटी बनाई थी। मंत्रियों की कमेटी ने सिर्फ कर्मचारी नेताओं के साथ चर्चा की थी। साथ ही सामान्य प्रशासन विभाग ने पदोन्नति को लेकर नियम शर्तों को खाका तैयार किया था। पिछले 3 साल से सरकार ने पदोन्नति की दिशा में कोई कदम नहंीं उठाया है।